श्री राम जन्मभूमि अयोद्धया की रक्षा के लिए दशमेश पिता साहेब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज जी की निहंग सेना से मुगलों की शाही सेना का भीषण युद्ध हुआ था जिसमें मुगलों की सेना को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। उस वक्त दिल्ली और आगरा पर औरंगजेब का शासन था।
इस युद्ध में गुरु गोबिद सिंह जी की निहंग सेना को चिमटाधारी साधुओं का साथ मिला था। कहते हैं कि मुगलों की शाही सेना के हमले की खबर जैसे ही चिमटाधारी साधु बाबा वैष्णवदास को लगी तो उन्होंने गुरु गोविंद सिंह जी से पत्र लिखकर मदद मांगी और इस पत्र के पाते ही श्री गुरु गोविंदसिंह जी ने तुरंत ही अपनी निहंग सेना जिसे गुरु जी की लाडली फौज भी कहा जाता है वो निहंग फौज भेज दी थी।
दशमेष गुरु उस समय आनंदपुर साहिब में थे। निहंग सिखों की सेनाओं ने साधुओं के साथ मिलकर मुगल सेना से भीषण युद्ध लड़ा। ये युद्ध बड़ा भयानक युद्ध हुवा इस युद्ध में पराजय के बाद सिखों और चिमटा धारी साधुओं के पराक्रम से औरंगजेब को मुंह की खानी पड़ी वो बहुत ही हैरान और क्रोधित हो गया था।
कहते हैं कि मुगलों से युद्ध लड़ने आई निहंग सेना ने सबसे पहले ब्रह्मकुंड में ही अपना डेरा जमाया था। गुरुद्वारे में वे पुरातन हथियार आज भी मौजूद हैं जिनसे मुगल सेना को सिख सेना द्वारा धूल चटा दी गई थी। गुरुजी ने अयोध्या की रक्षार्थ निहंग सिखों का बड़ा-सा जत्था भेजा था जिन्होंने राम जन्मभूमि को युद्ध करके आजाद करवाया और हिन्दुओं को सौंपकर वे पुन: पंजाब वापस चले गए थे। इस युद्ध के बाद सात साल तक किसी भी मुगल शासक ने रामजन्मभूमि की ओर देखने की भी हिमाक़त नहीं की थी।
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